EN اردو
ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है | शाही शायरी
ye mulaqat mulaqat nahin hoti hai

ग़ज़ल

ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है

हफ़ीज़ जालंधरी

;

ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है
बात होती है मगर बात नहीं होती है

बारयाबी का बुरा हो कि अब उन के दर पर
अगले वक़्तों की मुदारात नहीं होती है

ग़म तो घनघोर घटाओं की तरह उठते हैं
ज़ब्त का दश्त है बरसात नहीं होती है

ये मिरा तजरबा है हुस्न कोई चाल चले
बाज़ी-ए-इश्क़ कभी मात नहीं होती है

वस्ल है नाम हम-आहंगी ओ यक-रंगी का
वस्ल में कोई बुरी बात नहीं होती है

हिज्र तंहाई है सूरज है सवा नेज़े पर
दिन ही रहता है यहाँ रात नहीं होती है

ज़ब्त-ए-गिर्या कभी करता हूँ तो फ़रमाते हैं
आज क्या बात है बरसात नहीं होती है

मुझे अल्लाह की क़सम शेर में तहसीन-ए-बुताँ
मैं जो करता हूँ मेरी ज़ात नहीं होती है

फ़िक्र-ए-तख़्लीक़-ए-सुख़न मसनद-ए-राहत पे हफ़ीज़
बाइस-ए-कश्फ़-ओ-करामात नहीं होती है