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ये मंज़र ये रूप अनोखे सब शहकार हमारे हैं | शाही शायरी
ye manzar ye rup anokhe sab shahkar hamare hain

ग़ज़ल

ये मंज़र ये रूप अनोखे सब शहकार हमारे हैं

जमील मलिक

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ये मंज़र ये रूप अनोखे सब शहकार हमारे हैं
हम ने अपने ख़ून-ए-जिगर से क्या क्या नक़्श उभारे हैं

सदियों के दिल की धड़कन है उन की जागती आँखों में
ये जो फ़लक पर हँसमुख चंचल जगमग जगमग तारे हैं

एक ज़रा सी भूल पे हम को इतना तू बदनाम न कर
हम ने अपने घाव छुपा कर तेरे काज सँवारे हैं

कुछ बातें कुछ रातें कुछ बरसातें अपना सरमाया
माज़ी के अँधियारे में ये जलते दीप हमारे हैं

एक जहाँ की खोज में अपने प्यार की नगरी छोड़ आए
और ज़माना ये समझा हम प्यार की बाज़ी हारे हैं

सब से हँस कर मिलने वाले हम को किसी से बैर नहीं
दुनिया है महबूब हमें और हम दुनिया को प्यारे हैं