EN اردو
ये मायूसी कहीं वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न बन जाए | शाही शायरी
ye mayusi kahin wajh-e-sukun-e-dil na ban jae

ग़ज़ल

ये मायूसी कहीं वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न बन जाए

चराग़ हसन हसरत

;

ये मायूसी कहीं वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न बन जाए
ग़म-ए-बे-हासिली ही इश्क़ का हासिल न बन जाए

मदद ऐ जज़्ब-ए-दिल राह-ए-मोहब्बत सख़्त मुश्किल है
ख़याल-ए-दूरी-ए-मंज़िल कहीं मंज़िल न बन जाए

नहीं है दिल तो क्या पहलू में हल्की सी ख़लिश तो है
ये हल्की सी ख़लिश ही रफ़्ता रफ़्ता दिल न बन जाए

हुजूम-ए-शौक़ और राह-ए-मोहब्बत की बला-ख़ेज़ी
कहीं पहला क़दम ही आख़िरी मंज़िल न बन जाए