ये लफ़्ज़ लफ़्ज़ शोला-बयानी उसी की है
हिम्मत है और किस में कहानी उसी की है
तकमील हो रही है बिछड़ने के बावजूद
बाक़ी की ज़िंदगी भी कहानी उसी की है
रुत आ गई नई तो उसे देख कर लगा
शायद ये कोई याद पुरानी उसी की है
मंज़र में और क्या है ये देखा नहीं अभी
लेकिन ये है जो ओढ़नी धानी उसी की है
मैं तो बहुत दिनों से ये कहता था आज तो
सब ने कहा ये शाम सुहानी उसी की है
इक संग है कि जीने का जिस को मिला है हुक्म
इस दिल की धड़कनों में रवानी उसी की है
ख़त हो कोई किताब हो या दिल का ज़ख़्म हो
जो भी है मेरे पास निशानी उसी की है
ग़ज़ल
ये लफ़्ज़ लफ़्ज़ शोला-बयानी उसी की है
सदार आसिफ़