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ये क्या तुम्हारे जी में समाई तमाम-रात | शाही शायरी
ye kya tumhaare ji mein samai tamam-raat

ग़ज़ल

ये क्या तुम्हारे जी में समाई तमाम-रात

रियासत अली ताज

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ये क्या तुम्हारे जी में समाई तमाम-रात
गालों पे रख के सोए कलाई तमाम-रात

अख़्तर-शुमारियों में गुज़र ही गया जुनून
माना के मुझ को नींद न आई तमाम

देखे जो चश्म-ए-ज़ार कि सैलाब -हा-ए-ख़ूँ
याद आए दस्त-ओ-पा-ए-हिनाई तमाम-रात

बिस्तर की एक एक शिकन नोक-ए-ख़ार थी
करवट बदलते नींद न आई तमाम-रात

तस्बीह ले के हाथ में ज़ाहिद ने सुब्ह की
याँ 'ताज' हम ने ईद मनाई तमाम-रात