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ये क्या सितम-ज़रीफ़ी-ए-फ़ितरत है आज-कल | शाही शायरी
ye kya sitam-zarifi-e-fitrat hai aaj-kal

ग़ज़ल

ये क्या सितम-ज़रीफ़ी-ए-फ़ितरत है आज-कल

शकील बदायुनी

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ये क्या सितम-ज़रीफ़ी-ए-फ़ितरत है आज-कल
बेगानगी शरीक-ए-मोहब्बत है आज-कल

ग़म है कि एक तल्ख़ हक़ीक़त है आज-कल
दिल है कि सोगवार-ए-मोहब्बत है आज-कल

तन्हाई-ए-फ़िराक़ से घबरा रहा हूँ मैं
मेरे लिए सुकूँ भी क़यामत है आज-कल

हर साँस तर्जुमान-ए-ग़म-ए-दिल है इन दिनों
हर आह पर्दा-दार-ए-हिकायत है आज-कल

मेरी वफ़ा ही मेरे लिए क़हर बन गई
अपनी वफ़ा पे उन को नदामत है आज-कल

फिर चाहता हूँ इक अलम ताज़ा-तर 'शकील'
फिर दिल को जुस्तजू-ए-मसर्रत है आज-कल