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ये क्या सितम है कोई रंग-ओ-बू न पहचाने | शाही शायरी
ye kya sitam hai koi rang-o-bu na pahchane

ग़ज़ल

ये क्या सितम है कोई रंग-ओ-बू न पहचाने

ज़ेहरा निगाह

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ये क्या सितम है कोई रंग-ओ-बू न पहचाने
बहार में भी रहे बंद तेरे मय-ख़ाने

फ़ना के ज़मज़मे रंज-ओ-मेहन के अफ़्साने
यही मिले हैं नई ज़िंदगी को नज़राने

तिरी निगाह की जुम्बिश में अब भी शामिल हैं
मिरी हयात के कुछ मुख़्तसर से अफ़्साने

जो सुन सको तो ये सब दास्ताँ तुम्हारी है
हज़ार बार जताया मगर नहीं माने

जो कर गए हैं जुदा एक एक से हम को
दयार-ए-ग़र्ब से आए थे चंद बेगाने