ये क्या कि रंग हाथों से अपने छुड़ाएँ हम
इल्ज़ाम तितलियों के परों पर लगाएँ हम
होती हैं रोज़ रोज़ कहाँ ऐसी बारिशें
आओ कि सर से पाँव तलक भीग जाएँ हम
उकता गया है साथ के इन क़हक़हों से दिल
कुछ रोज़ को बिछड़ के अब आँसू बहाएँ हम
कब तक फ़ुज़ूल लोगों पर हम तजरबे करें
काग़ज़ के ये जहाज़ कहाँ तक उड़ाईं हम
किरदार-साज़ियों में बहुत काम आएँगे
बच्चों को वाक़िआत बड़ों के सुनाएँ हम
इस कार-ए-आगही को जुनूँ कह रहे हैं लोग
महफ़ूज़ कर रहे हैं फ़ज़ा में सदाएँ हम
'अज़हर' समाअतें हैं लतीफ़ों की मुंतज़िर
महफ़िल में अपने शेर किसे अब सुनाएँ हम
ग़ज़ल
ये क्या कि रंग हाथों से अपने छुड़ाएँ हम
अज़हर इनायती