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ये किस ने दश्त-ए-बला से मुझे पुकारा है | शाही शायरी
ye kis ne dasht-e-bala se mujhe pukara hai

ग़ज़ल

ये किस ने दश्त-ए-बला से मुझे पुकारा है

राहिल बुख़ारी

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ये किस ने दश्त-ए-बला से मुझे पुकारा है
अभी अभी तो मुझे ज़िंदगी ने हारा है

तसव्वुर-ए-रुख़-ए-जानाँ किए हुए हम लोग
हमारी आँख में आँसू नहीं सितारा है

कोई चराग़ न जुगनू न आइना न किताब
ये कैसा ख़्वाब मिरी आँख पर उतारा है

बस इक उमीद है जिस ने सँभाल रक्खा है
बस एक नाम है जिस का हमें सहारा है

अभी मैं आया-ए-ततहीर पढ़ने वाला हूँ
ये ख़ामुशी किसी इल्हाम का इशारा है