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ये किस मक़ाम पे पहुँचा है कारवान-ए-वफ़ा | शाही शायरी
ye kis maqam pe pahuncha hai karwan-e-wafa

ग़ज़ल

ये किस मक़ाम पे पहुँचा है कारवान-ए-वफ़ा

अय्यूब साबिर

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ये किस मक़ाम पे पहुँचा है कारवान-ए-वफ़ा
है एक ज़हर सा फैला हुआ फ़ज़ाओं में

निशान-ए-राह की रखते तो हैं ख़बर लेकिन
ज़बाँ पे ताले हैं और बेड़ियाँ हैं पाँव में

फिरे हैं मुद्दतों इंसान की तलाश में हम
वो शहर में नज़र आया हमें न गाँव में

सर-ए-नियाज़ भी अपना कभी न ख़म होगा
झलक ग़ुरूर की है आप की अदाओं में

ज़मीं से ता-ब-फ़लक हर तरफ़ तअ'फ़्फ़ुन है
गुलों की बू का पता क्या चले हवाओं में