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ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते | शाही शायरी
ye KHayal tha kabhi KHwab mein tujhe dekhte

ग़ज़ल

ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते

तारिक़ नईम

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ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते
कभी ज़िंदगी की किताब में तुझे देखते

मिरे माह तुम तो हिजाब ही में रहे मगर
हमें ताब थी तब-ओ-ताब में तुझे देखते

कभी कोई बाबत-ए-हुस्न हम से जो पूछता
तो हम अहल-ए-इश्क़ जवाब में तुझे देखते

किसी और धज से बनाते तेरा मुजस्समा
कभी हम जो ऐन-शबाब में तुझे देखते

कभी देखते तुझे तीरगी के जमाल में
कभी रौशनी के सराब में तुझे देखते