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ये कौन मेरे अलावा मिरे वजूद में है | शाही शायरी
ye kaun mere alawa mere wajud mein hai

ग़ज़ल

ये कौन मेरे अलावा मिरे वजूद में है

अब्दुर्राहमान वासिफ़

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ये कौन मेरे अलावा मिरे वजूद में है
कि एक शोर बला का मिरे वजूद में है

ये किस ने मेरी नज़र को बनाया आईना
ये नूर किस ने उजाला मिरे वजूद में है

इस एक फ़िक्र ने घोले मिरी हयात में ग़म
तू दूर क्यूँ नहीं जाता मिरे वजूद में है

कोई चराग़ मिरी सम्त भी रवाना करो
बहुत दिनों से अँधेरा मिरे वजूद में है

जो बूँद बूँद जलाती है तन बदन मेरा
वो आगही की तमन्ना मिरे वजूद में है

मैं एक मौज में हूँ जब से रौशनी मिली है
ये लग रहा है कि दुनिया मिरे वजूद में है

मैं बंद आँख से दुनिया को देख सकता हूँ
इक ऐसी चश्म-ए-तमाशा मिरे वजूद में है