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ये कश्ती-ए-हयात ये तूफ़ान-ए-हादसात | शाही शायरी
ye kashti-e-hayat ye tufan-e-hadsat

ग़ज़ल

ये कश्ती-ए-हयात ये तूफ़ान-ए-हादसात

अश्क अमृतसरी

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ये कश्ती-ए-हयात ये तूफ़ान-ए-हादसात
मुझ को तो कुछ ख़बर न रही आर-पार की

है गर्दिश-ए-ज़माना में दो-रंगी-ए-हयात
उम्मीद की सहर है तो शब इंतिज़ार की

ये दैर ये हरम ये कलीसा ये सोमनात
तारीफ़ क्या हो क़ुदरत पर्वरदिगार की

है कौन जो उठा सके बार-ए-ग़म-ए-हयात
हम ने भी गर क़बा-ए-ख़िरद तार तार की

अल्लाह रे तसादुम-ए-हालात-ओ-हादसात
की इख़्तियार संग ने सूरत शरार की

ज़र्रों की आब-ओ-ताब से तारों ने खाई मात
ये ख़ूबियाँ हैं ख़ाक तिरे इंकिसार की

ऐ 'अश्क' ज़िंदगी में न पूछी किसी ने बात
अब ख़ाक चूमते हैं हमारे मज़ार की