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ये कर्ब ये तसलसुल-ए-बे-ख़्वाब शब तो है | शाही शायरी
ye karb ye tasalsul-e-be-KHwab shab to hai

ग़ज़ल

ये कर्ब ये तसलसुल-ए-बे-ख़्वाब शब तो है

राग़िब अख़्तर

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ये कर्ब ये तसलसुल-ए-बे-ख़्वाब शब तो है
गोया तुम्हारी याद का कोई सबब तो है

अंजाम जो भी हो मिरा इस रज़्म-गाह में
मंसूब तेरे नाम से जश्न-ए-तरब तो है

सरमाया-ए-हयात मिरे पास कम नहीं
ज़ख़्म-ए-जिगर फ़रेब-ए-नज़र दर्द सब तो है

मिलने में उज़्र तर्ज़-ए-तकल्लुम बुझा बुझा
पहले न थी ये बात मगर ख़ैर अब तो है

ऐ बहर-ए-इम्बिसात कि तू ला-ज़वाल है
अब भी तिरे क़रीब कोई तिश्ना-लब तो है