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ये कैसी प्यास है मैं जिस्म के सराब में हूँ | शाही शायरी
ye kaisi pyas hai main jism ke sarab mein hun

ग़ज़ल

ये कैसी प्यास है मैं जिस्म के सराब में हूँ

खलील तनवीर

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ये कैसी प्यास है मैं जिस्म के सराब में हूँ
निकल के जाऊँ किधर कैसे इज़्तिराब में हूँ

चटान सर पे लिए फिर रहा हूँ सदियों से
जनम जनम से न जाने में किस अज़ाब में हूँ

तू मुझ को भूलना चाहे तो भूल सकता है
मैं एक हर्फ़-ए-तमन्ना तिरी किताब में हूँ

मैं क्या हूँ कौन हूँ क्या चीज़ मुझ में मुज़्मर है
कई हिजाब उठाए मगर हिजाब में हूँ

बिखर ही जाऊँगा इक ज़रबत-ए-सदा तो मिले
मैं एक रक़्स-ए-शरर सीना-ए-रबाब में हूँ