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ये कैसी हिजरतें हैं मौसमों में | शाही शायरी
ye kaisi hijraten hain mausamon mein

ग़ज़ल

ये कैसी हिजरतें हैं मौसमों में

ख़ालिद सिद्दीक़ी

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ये कैसी हिजरतें हैं मौसमों में
परिंदे भी नहीं हैं घोंसलों में

भड़क उट्ठेंगे शोले जंगलों में
अगर जुगनू भी चमका झाड़ियों में

ये किन सोचों की दीमक रेंगती है
मिरे माथे की गहरी सिलवटों में

रक़म है चेहरा चेहरा जो कहानी
किन अफ़्सानों में है किन नाविलों में

बहुत तन्हा है वो ऊँची हवेली
मिरे गाँव के इन कच्चे घरों में