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ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो | शाही शायरी
ye kar-e-KHair hai isko na kar-e-bad samho

ग़ज़ल

ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो

आबिद मलिक

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ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो
मुझे तबाह करो और इसे मदद समझो

मैं इस कहानी में तरमीम कर के लाया हूँ
जो तुम को पहले सुनाई थी मुस्तरद समझो

मुझे ख़ुदा से नहीं है कोई गिला लेकिन
तुम आदमी हो तो फिर आदमी की हद समझो

ये सिर्फ़ पेड़ नहीं है सदी का क़िस्सा है
ये जो भी बात करे उस को मुस्तनद समझो

यहाँ किसी ने भी आइंदगाँ नहीं देखे
सो जो गुज़ार चुके हो वही अबद समझो