ये जो रिश्ता है मेरा मिट्टी से
रूप सारा है मेरा मिट्टी से
सब्ज़ा कहता है लूटे जाओ मुझे
दिल कुशादा है मेरा मिट्टी से
मैं सितारा नहीं हूँ सूरज हूँ
गहरा रिश्ता है मेरा मिट्टी से
मैं तो ख़ुद-रौ दरख़्त हूँ लेकिन
पेट भरता है मेरा मिट्टी से
मुतमइन हूँ कि फ़स्ल अच्छी है
सीना ठंडा है मेरा मिट्टी से
हर हवेली में दीप रौशन है
गाँव ज़िंदा है मेरा मिट्टी से
जो कहूँगा वो सच कहूँगा 'ख़लील'
क्यूँकि रिश्ता है मेरा मिट्टी से
ग़ज़ल
ये जो रिश्ता है मेरा मिट्टी से
ख़लील रामपुरी