ये जो मुझ पर निखार है साईं
आप ही की बहार है साईं
आप चाहें तो जान भी ले लें
आप को इख़्तियार है साईं
तुम मिलाते हो बिछड़े लोगों को
एक मेरा भी यार है साईं
किसी खूँटी से बाँध दीजे उसे
दिल बड़ा बे-महार है साईं
इश्क़ में लग़्ज़िशों पे कीजे मुआफ़
साईं ये पहली बार है साईं
कुल मिला कर है जो भी कुछ मेरा
आप से मुस्तआ'र है साईं
एक कश्ती बना ही दीजे मुझे
कोई दरिया के पार है साईं
रोज़ आँसू कमा के लाता हूँ
ग़म मिरा रोज़गार है साईं
वुसअत-ए-रिज़्क की दुआ दीजे
दर्द का कारोबार है साईं
ख़ार-ज़ारों से हो के आया हूँ
पैरहन तार-तार है साईं
कभी आ कर तो देखिए कि ये दिल
कैसा उजड़ा दयार है साईं
ग़ज़ल
ये जो मुझ पर निखार है साईं
रहमान फ़ारिस