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ये जो मुझ में अज़ाब है प्यारे | शाही शायरी
ye jo mujh mein azab hai pyare

ग़ज़ल

ये जो मुझ में अज़ाब है प्यारे

नवनीत शर्मा

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ये जो मुझ में अज़ाब है प्यारे
उस की चुप का जवाब है प्यारे

आस अब आसमाँ से रक्खी है
छत का मौसम ख़राब है प्यारे

अश्क आहें ख़ुशी ठहाके साथ
ज़िंदगी वो किताब है प्यारे

प्यार अगर है तो इस की हद पाना
सबसे मुश्किल हिसाब है प्यारे

कट चुकी हैं तमाम ज़ंजीरें
फिर भी ख़ाना-ख़राब है प्यारे

कौन तेरा है किस का है तू भी
ऐसा कोई हिसाब है प्यारे

दिल में छप कर भी ख़ुशबुएँ देगी
हर तमन्ना गुलाब है प्यारे