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ये जो इक सैल-ए-फ़ना है मिरे पीछे पीछे | शाही शायरी
ye jo ek sail-e-fana hai mere pichhe pichhe

ग़ज़ल

ये जो इक सैल-ए-फ़ना है मिरे पीछे पीछे

अहमद फ़रीद

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ये जो इक सैल-ए-फ़ना है मिरे पीछे पीछे
मेरे होने की सज़ा है मिरे पीछे पीछे

आगे आगे है मिरे दिल के चटख़ने की सदा
और मिरी गर्द-ए-अना है मिरे पीछे पीछे

ज़िंदगी थक के किसी मोड़ पे रुकती ही नहीं
कब से ये आबला-पा है मिरे पीछे पीछे

अपना साया तो मैं दरिया में बहा आया था
कौन फिर भाग रहा है मिरे पीछे पीछे

पाँव पर पाँव को रखता है चला आता है
मिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है मिरे पीछे पीछे

मेरी तंहाई से टकरा के पलट जाएगी
ये जो ख़ुशबू-ए-क़बा है मिरे पीछे पीछे

मैं तो दौड़ा हूँ ख़ुद अपने ही तआक़ुब में 'फ़रीद'
चाँद क्यूँ भाग पड़ा है मिरे पीछे पीछे