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ये जो हर शय में तिरी जल्वागरी है ऐ दोस्त | शाही शायरी
ye jo har shai mein teri jalwagari hai ai dost

ग़ज़ल

ये जो हर शय में तिरी जल्वागरी है ऐ दोस्त

हज़ार लखनवी

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ये जो हर शय में तिरी जल्वागरी है ऐ दोस्त
ये भी मेरी वसी-उन-नज़री है ऐ दोस्त

ख़ंदा-ए-गुल है जो ज़ख़्म-ए-जिगरी है ऐ दोस्त
मौज-ए-ग़म मौज-ए-नसीम-सहरी है ऐ दोस्त

तेरी फ़िरदौस-ख़याली हो मुबारक तुझ को
मेरी जन्नत मिरे दामन की तरी है ऐ दोस्त

क्या समाए ग़म-ए-इंसाँ निगह-ए-इंसाँ में
अर्श-पैमाई भी फ़हम-बशरी है ऐ दोस्त

मुझ को आता है मुसीबत में ग़ज़ल-ख़्वाँ होना
मेरी मेराज मिरी बे-हुनरी है ऐ दोस्त

जिस को कहते हैं तिरी याद में गुम हो जाना
वो भी इक सिलसिला-ए-बा-ख़बरी है ऐ दोस्त

तोड़ कर मुझ को ज़रा आईना-ए-क़ल्ब हज़ार
कितना मजबूर फ़न-ए-शीशा-गरी है ऐ दोस्त