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ये जो हर लम्हा मिरी साँस है आती जाती | शाही शायरी
ye jo har lamha meri sans hai aati jati

ग़ज़ल

ये जो हर लम्हा मिरी साँस है आती जाती

कौसर मज़हरी

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ये जो हर लम्हा मिरी साँस है आती जाती
एक तूफ़ान है सीने में उठाती जाती

मौजें उठ उठ के तह-ए-आब चली जाती हैं
हाँ मगर किस की है तस्वीर बनाती जाती

ये शजर जिस के सबब रक़्स है करता रहता
काश वो बाद-ए-सबा दिल को नचाती जाती

बस वही क़ीमती इक शय जो मिरा हासिल थी
हर घड़ी पास ही रहती न यूँ आती जाती

कम से कम संग-ए-सर-ए-राह तो होता 'कौसर'
और दुनिया मुझे ठोकर भी लगाती जाती