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ये जो हम से दो चार बैठे हैं | शाही शायरी
ye jo humse do chaar baiThe hain

ग़ज़ल

ये जो हम से दो चार बैठे हैं

मोहम्मद अमान निसार

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ये जो हम से दो चार बैठे हैं
फ़ित्ना-ए-रोज़गार बैठे हैं

तिश्ना-ए-ख़ूँ यही हमारे हैं
ये जो बाँध कटार बैठे हैं

तेरे कूचे में जैसे नक़्श-ए-क़दम
कब से हम ख़ाकसार बैठे हैं

ग़ैर के सर पे तेग़ मत खींचो
हम तुम्हारे 'निसार' बैठे हैं