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ये जो गुल-रू निगार हँसते हैं | शाही शायरी
ye jo gul-ru nigar hanste hain

ग़ज़ल

ये जो गुल-रू निगार हँसते हैं

नज़ीर अकबराबादी

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ये जो गुल-रू निगार हँसते हैं
फ़ित्ना-गर हैं हज़ार हँसते हैं

अर्ज़ बोसे की सच न जानो तुम
हम तो ऐ गुल-एज़ार हँसते हैं

दिल को दे मुफ़्त हँसते हैं हम यूँ
जिस तरह शर्मसार हँसते हैं

हम जो करते हैं इश्क़ पीरी में
ख़ूब-रू बार बार हँसते हैं

जो क़दीमी हैं यार दोस्त 'नज़ीर'
वो भी बे-इख़्तियार हँसते हैं