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ये जो आबाद होने जा रहे हैं | शाही शायरी
ye jo aabaad hone ja rahe hain

ग़ज़ल

ये जो आबाद होने जा रहे हैं

इमरान-उल-हक़ चौहान

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ये जो आबाद होने जा रहे हैं
बहुत नाशाद होने जा रहे हैं

जुदाई की घड़ी सर पर खड़ी है
हम उस की याद होने जा रहे हैं

तिरी चश्म-ए-तमाशा की हवस में
फ़क़त बर्बाद होने जा रहे हैं

गिरफ़्तारान-ए-दाम-ए-ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ
बहुत आज़ाद होने जा रहे हैं

सभी कुछ भूलता जाता है और हम
इसी में शाद होने जा रहे हैं

सभी आईना-रू ओ आईना-हा
ग़िज़ा-ए-बाद होने जा रहे हैं