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ये जाम-ओ-बादा-ओ-मीना तो सब दिलासे हैं | शाही शायरी
ye jam-o-baada-o-mina to sab dilase hain

ग़ज़ल

ये जाम-ओ-बादा-ओ-मीना तो सब दिलासे हैं

ख़ुर्शीद रिज़वी

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ये जाम-ओ-बादा-ओ-मीना तो सब दिलासे हैं
लबों को देख वही उम्र-भर के प्यासे हैं

करो जो याद तो हम से भी निस्बतें हैं तुम्हें
वो निस्बतें जो कफ़-ए-पा को नक़्श-ए-पा से हैं

ज़रा में ज़ख़्म लगाए ज़रा में दे मरहम
बड़े अजीब रवाबित मिरे सबा से हैं

तिरे बग़ैर भी कटती रही ज़रा न रुकी
शिकायतें मुझे उम्र-ए-गुरेज़-पा से हैं

न बह सकीं तो रगों में रवाँ-दवाँ नश्तर
निकल बहीं तो ये आँसू ज़रा ज़रा से हैं