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ये इश्क़ इक इम्तिहान तो ले मैं पास कर लूँ | शाही शायरी
ye ishq ek imtihan to le main pas kar lun

ग़ज़ल

ये इश्क़ इक इम्तिहान तो ले मैं पास कर लूँ

ज़ीशान साजिद

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ये इश्क़ इक इम्तिहान तो ले मैं पास कर लूँ
हुदूद हूँ तो हुदूद सारी क्रॉस कर लूँ

बहुत कठिन मसअलों की तहलील भी है मुमकिन
अगर मैं इक मसअले के टुकड़े पचास कर लूँ

तमाम क़ुदरत खड़ी है इम्काँ के नज़रिये पर
क़दम उठाने से पहले सिक्के से टॉस कर लूँ

किसान खेतों से घर न जा पाया सोचता था
इकट्ठी पहले मैं उम्र-भर की कपास कर लूँ

ये ज़िंदगी मुम्किनात का इक हरा शजर है
कोई तो उम्मीद बाँध लूँ कोई आस कर लूँ

शुजाअतों के लगेंगे सब वाक़िआ'त झूटे
मैं ख़ुद को गर मुब्तला-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास कर लूँ

सफ़र तो कट जाएगा मगर क्या सफ़र कटेगा
सो अपने हमराह चंद फूलों की बास कर लूँ

मैं आँख में मुंतक़िल करूँ रौशनी को 'ज़ीशान'
मगर ये बेहतर है धूप का इनइ'कास कर लूँ