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ये इन दिनों जो हम से इतनी रुखाइयाँ हैं | शाही शायरी
ye in dinon jo humse itni rukhaiyan hain

ग़ज़ल

ये इन दिनों जो हम से इतनी रुखाइयाँ हैं

मिर्ज़ा नईम बेग जवान

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ये इन दिनों जो हम से इतनी रुखाइयाँ हैं
शायद किसी ने बातें कुछ कुछ सुझाइयाँ हैं

ऐ अंदलीब सच कह क्या फ़स्ल-ए-गुल फिर आई
फ़ौजें जुनूँ की हम पर कैसी चढ़ाइयाँ हैं

किस बे-अदब ने तुम से गुल-बाज़ी आज की है
मुँह पर तुम्हारे चोटें क्या सख़्त आइयाँ हैं

दीवार-ओ-दर की छाती सूराख़ हो गई है
क्या रौज़नों से उस ने आँखें लड़ाइयाँ हैं

पैवस्ता अबरू उस की मैं देख कर ये समझा
दो शाख़ें हैं कि झुक कर मिलने को आइयाँ हैं