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ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा | शाही शायरी
ye hasin log hain tu inki murawwat pe na ja

ग़ज़ल

ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा

ऐतबार साजिद

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ये हसीं लोग हैं तू इन की मुरव्वत पे न जा
ख़ुद ही उठ बैठ किसी इज़्न ओ इजाज़त पे न जा

सूरत-ए-शम्अ तिरे सामने रौशन हैं जो फूल
उन की किरनों में नहा ज़ौक़-ए-समाअत पे न जा

दिल सी चेक-बुक है तिरे पास तुझे क्या धड़का
जी को भा जाए तो फिर चीज़ की क़ीमत पे न जा

इतना कम-ज़र्फ़ न बन उस के भी सीने में है दिल
उस का एहसास भी रख अपनी ही राहत पे न जा

देखता क्या है ठहर कर मिरी जानिब हर रोज़
रौज़न-ए-दर हूँ मिरी दीद की हैरत पे न जा

तेरे दिल-सोख़्ता बैठे हैं सर-ए-बाम अभी
बाल खोले हुए तारों भरी इस छत पे न जा

मेरी पोशाक तो पहचान नहीं है मेरी
दिल में भी झाँक मिरी ज़ाहिरी हालत पे न जा