ये है मिरी नज़रों की मुनाजात का आलम
ज़र्रे भी दिखाते हैं समावात का आलम
पुर-नूर तिरे हुस्न से आग़ोश-ए-तसव्वुर
दूरी में भी हासिल है मुलाक़ात का आलम
ईमा का है फ़ैज़ान कि एहसास का एहसान
एक एक जफ़ा में है मुदारात का आलम
जल्वों की ये कसरत है कि हैरान हैं आँखें
आईने दिखाते हैं हिजाबात का आलम
दिल पर नहीं क़ाबू तो ज़बाँ लाख हो बस में
नज़रों से झलकता है ख़यालात का आलम
हर मौज-ए-नफ़स उन की महक से है मोअ'त्तर
पिन्हाँ है तग़ाफ़ुल में इनायात का आलम
क्या ज़िक्र-ए-सुख़न उन की ख़मोशी में भी 'कौकब'
अंगड़ाइयाँ लेता है किनायात का आलम

ग़ज़ल
ये है मिरी नज़रों की मुनाजात का आलम
कौकब शाहजहाँपुरी