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ये हादिसा तो हुआ ही नहीं है तेरे बा'द | शाही शायरी
ye hadisa to hua hi nahin hai tere baad

ग़ज़ल

ये हादिसा तो हुआ ही नहीं है तेरे बा'द

कफ़ील आज़र अमरोहवी

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ये हादिसा तो हुआ ही नहीं है तेरे बा'द
ग़ज़ल किसी को कहा ही नहीं है तेरे बा'द

है पुर-सुकून समुंदर कुछ इस तरह दिल का
कि जैसे चाँद खिला ही नहीं है तेरे बा'द

महकती रात से दिल से क़लम से काग़ज़ से
किसी से रब्त रखा ही नहीं है तेरे बा'द

ख़याल ख़्वाब फ़साने कहानियाँ थीं मगर
वो ख़त तुझे भी लिखा ही नहीं है तेरे बा'द

कहाँ से महकेगी होंटों पे लम्स की ख़ुशबू
किसी को मैं ने छुआ ही नहीं है तेरे बा'द

चराग़ पलकों पे 'आज़र' किसी की यादों का
क़सम ख़ुदा की जला ही नहीं है तेरे बा'द