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ये गिला दिल से तो हरगिज़ नहीं जाना साहब | शाही शायरी
ye gila dil se to hargiz nahin jaana sahab

ग़ज़ल

ये गिला दिल से तो हरगिज़ नहीं जाना साहब

नज़ीर अकबराबादी

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ये गिला दिल से तो हरगिज़ नहीं जाना साहब
सब ने जाना हमें पर तुम ने न जाना साहब

इन बयानों से ग़रज़ हम ने ये जाना साहब
आप को ख़ून हमारा है बहाना साहब

छोड़ कर आप के कूचे को फिरूँ सहरा में
सो तो मजनूँ सा नहीं हूँ मैं दिवाना साहब

याद थे हम को जवानी में तो सौ मक्र-ओ-फ़रेब
इक करिश्मा था तुम्हें दाम में लाना साहब

अब जो बूढ़े हैं तो अब भी हमें शैतान 'नज़ीर'
हँस के कहता है अजी आइए नाना-साहिब