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ये एहतियात इश्क़ पे लाज़िम सदा रहे | शाही शायरी
ye ehtiyat ishq pe lazim sada rahe

ग़ज़ल

ये एहतियात इश्क़ पे लाज़िम सदा रहे

रोहित सोनी ‘ताबिश’

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ये एहतियात इश्क़ पे लाज़िम सदा रहे
हर-चंद क़ुर्बतें हों मगर फ़ासला रहे

हाजत नहीं की जाम-ओ-सुबू मय-कदा रहे
दिल का तिरी निगाह से बस राब्ता रहे

माह-ओ-नुजूम-ओ-शम्स की थम जाएँ गर्दिशें
ठहरे तिरी नज़र तो ज़माना रुका रहे

मामूर खुशबुओं से रहे गुलशन-ए-वजूद
बस इक तुझी को ज़ेहन अगर सोचता रहे

रानाई-ए-जमाल का आलम न पूछिए
इक बार देख ले जो उसे देखता रहे

फ़रियाद ले के जाएँ भी अहल-ए-चमन कहाँ
जब बाग़बाँ ख़ुद अपना चमन लूटता रहे

कुछ देर और ऐ शब-ए-हिज्राँ ठहर अभी
कुछ देर और दर्द का तूफ़ाँ उठा रहे