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ये दीवाने कभी पाबंदियों का ग़म नहीं लेंगे | शाही शायरी
ye diwane kabhi pabandiyon ka gham nahin lenge

ग़ज़ल

ये दीवाने कभी पाबंदियों का ग़म नहीं लेंगे

कलीम आजिज़

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ये दीवाने कभी पाबंदियों का ग़म नहीं लेंगे
गरेबाँ चाक जब तक कर न लेंगे दम नहीं लेंगे

लहू देंगे तो लेंगे प्यार मोती हम नहीं लेंगे
हमें फूलों के बदले फूल दो शबनम नहीं लेंगे

ये ग़म किस ने दिया है पूछ मत ऐ हम-नशीं हम से
ज़माना ले रहा है नाम उस का हम नहीं लेंगे

मोहब्बत करने वाले भी अजब ख़ुद्दार होते हैं
जिगर पर ज़ख़्म लेंगे ज़ख़्म पर मरहम नहीं लेंगे

ग़म-ए-दिल ही के मारों को ग़म-ए-अय्याम भी दे दो
ग़म इतना लेने वाले क्या अब इतना ग़म नहीं लेंगे

सँवारे जा रहे हैं हम उलझती जाती हैं ज़ुल्फ़ें
तुम अपने ज़िम्मा लो अब ये बखेड़ा हम नहीं लेंगे

शिकायत उन से करना गो मुसीबत मोल लेना है
मगर 'आजिज़' ग़ज़ल हम बे-सुनाए दम नहीं लेंगे