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ये धुँद ये ग़ुबार छटे तो पता चले | शाही शायरी
ye dhund ye ghubar chhaTe to pata chale

ग़ज़ल

ये धुँद ये ग़ुबार छटे तो पता चले

शोएब निज़ाम

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ये धुँद ये ग़ुबार छटे तो पता चले
सूरज का हाल रात कटे तो पता चले

चेहरों के ख़द-ओ-ख़ाल सलामत हैं या नहीं
अब आईनों से गर्द हटे तो पता चले

ज़ुल्मत के कारोबार में उस का भी एक दिन
चेहरा ग़ुबार-ए-शब से अटे तो पता चले

उम्मीद की ये नन्ही किरन वाहिमा न हो
अब चादर-ए-सियाह फटे तो पता चले

बिखरा हुआ है मेरा क़बीला कहाँ तलक
सौग़ात-ए-दर्द फिर से मिटे तो पता चले

घर में वो इक पुरानी सी तस्वीर थी कि है
सैल-ए-बला का ज़ोर घटे तो पता चले