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ये दश्त-ओ-दमन कोह ओ कमर किस के लिए है | शाही शायरी
ye dasht-o-daman koh o kamar kis ke liye hai

ग़ज़ल

ये दश्त-ओ-दमन कोह ओ कमर किस के लिए है

नश्तर ख़ानक़ाही

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ये दश्त-ओ-दमन कोह ओ कमर किस के लिए है
हर लम्हा ज़मीं गर्म-ए-सफ़र किस के लिए है

किस किस के मुक़ाबिल है मिरी क़ुव्वत-ए-बाज़ू
बिफरी हुई मौजों में भँवर किस के लिए है

जा जा के पलट आते हैं किस के लिए मौसम
ये शाम शफ़क़ रात सहर किस के लिए है

हैं किस के तअल्लुक़ से मिरी आँख में आँसू
मुट्ठी में सदफ़ की ये गुहर किस के लिए है

अल्फ़ाज़ हैं मफ़्हूम से लबरेज़ तो क्यूँ हैं
गर है तो दुआओं में असर किस के लिए है

बे-नींद गुज़र जाती हैं किस के लिए रातें
ये काविश-ए-फ़न अर्ज़-ए-हुनर किस के लिए है

किस के लिए ढलती हैं मिरी फ़िक्र की शामें
ये क़ल्ब-ए-हज़ीं दीदा-ए-तर किस के लिए है

उठता है सवालों से सवालों का धुँदलका
सब उस के लिए है वो मगर किस के लिए है