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ये दर्द-ए-ला-ज़वाल तुम्हें कौन दे गया | शाही शायरी
ye dard-e-la-zawal tumhein kaun de gaya

ग़ज़ल

ये दर्द-ए-ला-ज़वाल तुम्हें कौन दे गया

क़ैसर क़लंदर

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ये दर्द-ए-ला-ज़वाल तुम्हें कौन दे गया
सरमाया-ए-जमाल तुम्हें कौन दे गया

मौसीक़ियों की चाँदनी निखरी है लफ़्ज़ लफ़्ज़
ये इशरत-ए-ख़याल तुम्हें कौन दे गया

इस वादी-ए-सुकून-ओ-मुसर्रत के बावजूद
ये रंज ये मलाल तुम्हें कौन दे गया

कब तक तलाश कीजिए आसूदा-हालियाँ
अफ़्सुर्दा माह-ओ-साल तुम्हें कौन दे गया

दिल के क़रीब हिज्र की रुत ख़ेमा-ज़न हुई
तहनिय्यत-ए-विसाल तुम्हें कौन दे गया

मफ़क़ूद हो गई हैं यहाँ लब-कुशाइयाँ
ये ढेर भर सवाल तुम्हें कौन दे गया

रानाइयों के लब पे मुकर्रर सवाल है
बे-ऐब ख़द्द-ओ-ख़ाल तुम्हें कौन दे गया