ये चलती-फिरती सी लाशें शुमार करने को
बहुत है काम सर-ए-रहगुज़ार करने को
गुज़र रहे हैं ब-उजलत बहार के अय्याम
पड़ा है रख़्त-ए-बदन तार तार करने को
गले की सम्त मिरे अपने हाथ बढ़ते हैं
रहा ही क्या है भला ए'तिबार करने को
बदन को चाट लिया है सियाह काई ने
अभी तो कितने समुंदर हैं पार करने को
अभी से चाँद सितारों की आँखें पथराई
पड़ी है रात अभी इंतिज़ार करने को
समझ में आ न सकी ये अदा गुलाबों की
चमन में आते हैं सीना फ़िगार करने को

ग़ज़ल
ये चलती-फिरती सी लाशें शुमार करने को
हामिदी काश्मीरी