EN اردو
ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत | शाही शायरी
ye bole jo un ko kaha be-murawwat

ग़ज़ल

ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत

अरशद अली ख़ान क़लक़

;

ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
मैं क्या तुम से भी हूँ सिवा बे-मुरव्वत

लक़ब मेरे क़ातिल के क्या पूछते हो
सितमगार ना-आश्ना बे-मुरव्वत

उन आईना-रूयों में है वो सितमगर
बड़ा ख़ुद-ग़रज़ ख़ुद-नुमा बे-मुरव्वत

तू वो कज-अदा है जो दुनिया में ढूँढें
न तुझ सा मिले दूसरा बे-मुरव्वत

नहीं उस में रहम-ओ-हया कुछ वो क़ातिल
बड़ा संग-दिल है बड़ा बे-मुरव्वत

तिरी चश्म-पोशी से आँखों में दम है
इधर देख ओ बेवफ़ा बे-मुरव्वत

सिवा तेरे सारे हसीनों को देखा
ख़ुनुक बे-नमक बे-मज़ा बे-मुरव्वत

गिला जौर का सुन के बोले तुम्हें क्या
मैं अहल-ए-मुरव्वत हूँ या बे-मुरव्वत

जफ़ाओं का उस से गिला कीजिए जब
तू कहता है वो बेवफ़ा बे-मुरव्वत

चलो ढूँढ लो बा-वफ़ा और कोई
अगर मैं हूँ ना-आश्ना बे-मुरव्वत

'क़लक़' उठ गई रस्म-ए-उल्फ़त जहाँ से
हसीं सब हैं दुनिया के क्या बे-मुरव्वत