ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
मैं क्या तुम से भी हूँ सिवा बे-मुरव्वत
लक़ब मेरे क़ातिल के क्या पूछते हो
सितमगार ना-आश्ना बे-मुरव्वत
उन आईना-रूयों में है वो सितमगर
बड़ा ख़ुद-ग़रज़ ख़ुद-नुमा बे-मुरव्वत
तू वो कज-अदा है जो दुनिया में ढूँढें
न तुझ सा मिले दूसरा बे-मुरव्वत
नहीं उस में रहम-ओ-हया कुछ वो क़ातिल
बड़ा संग-दिल है बड़ा बे-मुरव्वत
तिरी चश्म-पोशी से आँखों में दम है
इधर देख ओ बेवफ़ा बे-मुरव्वत
सिवा तेरे सारे हसीनों को देखा
ख़ुनुक बे-नमक बे-मज़ा बे-मुरव्वत
गिला जौर का सुन के बोले तुम्हें क्या
मैं अहल-ए-मुरव्वत हूँ या बे-मुरव्वत
जफ़ाओं का उस से गिला कीजिए जब
तू कहता है वो बेवफ़ा बे-मुरव्वत
चलो ढूँढ लो बा-वफ़ा और कोई
अगर मैं हूँ ना-आश्ना बे-मुरव्वत
'क़लक़' उठ गई रस्म-ए-उल्फ़त जहाँ से
हसीं सब हैं दुनिया के क्या बे-मुरव्वत
ग़ज़ल
ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
अरशद अली ख़ान क़लक़