ये भी करना पड़ा मोहब्बत में
ख़ुद से डरना पड़ा मोहब्बत में
दश्त-ए-जाँ के मुहीब रस्तों से
फिर गुज़रना पड़ा मोहब्बत में
कितने मल्बूस ज़ख़्म ने बदले
जब सँवरना पड़ा मोहब्बत में
पार उतरे तो फिर समझ आई
क्यूँ उतरना पड़ा मोहब्बत में
ख़ुद-बख़ुद हम सिमट गए दिल में
जब बिखरना पड़ा मोहब्बत में
ग़ज़ल
ये भी करना पड़ा मोहब्बत में
अासिफ़ शफ़ी