ये बात सच है कि तेरा मकान ऊँचा है
तू ये न सोच तिरा ख़ानदान ऊँचा है
कमाल कुछ भी नहीं और शोहरतों की तलब
सँभल के तीर चलाना निशान ऊँचा है
कहीं अज़ाब न बन जाए उस का साया भी
सुतून टूटे हुए साएबान ऊँचा है
मुझे यक़ीन है तू शर्त हार जाएगा
कि दस्तरस से तिरी आसमान ऊँचा है
वो क़ातिलों को छुड़ा लाएगा अदालत से
है उस की बात मुदल्लल बयान ऊँचा है
क़ुबूल करता नहीं ये दिलों के रिश्तों को
समाज तेरे मिरे दरमियान ऊँचा है
इसी ग़ुरूर में 'दाना' सरों से छत भी गई
तिरे मकान से मेरा मकान ऊँचा है
ग़ज़ल
ये बात सच है कि तेरा मकान ऊँचा है
अब्बास दाना