EN اردو
ये बादल ग़म के मौसम के जो छट जाते तो अच्छा था | शाही शायरी
ye baadal gham ke mausam ke jo chhaT jate to achchha tha

ग़ज़ल

ये बादल ग़म के मौसम के जो छट जाते तो अच्छा था

करामत बुख़ारी

;

ये बादल ग़म के मौसम के जो छट जाते तो अच्छा था
ये फैलाए हुए मंज़र सिमट जाते तो अच्छा था

ये दिल तारीक हुज्रा है इसे रौशन करो आ कर
ये दिन तारीकियों वाले जो कट जाते तो अच्छा था

मक़ाम-ए-दिल कहीं आबादियों से दूर है शायद
मगर ये फ़ासले दल के सिमट जाते तो अच्छा था

ये दौर-ए-हब्स टूटे तो हम अपना बादबाँ खोलें
मगर बाद-ए-मुख़ालिफ़ में जो डट जाते तो अच्छा था

कहीं गर्द-ए-मलामत से कहीं गर्द-ए-नदामत से
ये चेहरे गर्द-ए-गर्दूं से जो अट जाते तो अच्छा था