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ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो | शाही शायरी
ye arz-e-shauq hai aaraish-e-bayan bhi to ho

ग़ज़ल

ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो

सय्यद आबिद अली आबिद

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ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो
अदा-शनास तो है आँख ख़ूँ-चकाँ भी तो हो

ख़ुदा ख़फ़ा है तो सच्चे हैं नासेहान-ए-अज़ीज़
हमारे लब पे कभी शिकवा-ए-बुताँ भी तो हो

ये रंग-ओ-निकहत-ओ-तरकीब-ओ-लफ़्ज़ ख़ीरा-सरी
ज़े-राह-ए-दीदा ब-दिल-मौज-ए-ख़ूँ-रवाँ भी हो

हमें भी नग़्मागरी पर है नाज़ बात तो कर
हमें भी जाँ नहीं प्यारी है इम्तिहाँ भी तो हो

अभी तो हूँ दर-ओ-दीवार ही से महव-ए-कलाम
हरीफ़-ए-दौलत-ए-ग़म कोई राज़दाँ भी तो हो

क़तील-ए-नाज़ हूँ ऐ वा-ए-ए'तिमाद-ए-वफ़ा
वो इल्तिफ़ात करे पहले बद-गुमाँ भी तो हो

किसी को उन से मोहब्बत किसी को मुझ से हसद
मिलें वो मुझ से मगर कोई दरमियाँ भी तो हो