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ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे | शाही शायरी
ye alag baat ki chalte rahe sab se aage

ग़ज़ल

ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे

ज़करिय़ा शाज़

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ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे
वर्ना देखा ही नहीं तेरी तलब से आगे

ये मोहब्बत है इसे देख तमाशा न बना
मुझ से मिलना है तो मिल हद्द-ए-अदब से आगे

ये अजब शहर है क्या क़हर है ऐ दिल मेरे
सोचता कोई नहीं ख़्वाब-ए-तरब से आगे

अब नए दर्द पस-ए-अश्क-ए-रवाँ जागते हैं
हम कि रोते थे किसी और सबब से आगे

'शाज़' यूँ है कि कोई पल भी फ़ुसूँ-कार नहीं
ध्यान आते थे मिरे दिल में अजब से आगे