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ये अजब रास्ता है जिस पे लगाया है मुझे | शाही शायरी
ye ajab rasta hai jis pe lagaya hai mujhe

ग़ज़ल

ये अजब रास्ता है जिस पे लगाया है मुझे

जमील यूसुफ़

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ये अजब रास्ता है जिस पे लगाया है मुझे
महव-ए-हैरत हूँ कि क्या चीज़ बनाया है मुझे

तेरी दूरी भी है मुश्किल तिरी क़ुर्बत भी मुहाल
किस क़दर तू ने मिरी जान सताया है मुझे

तू किसी फूल किसी आँख के पर्दे में रहा
तू ने कब अपना हसीं चेहरा दिखाया है मुझे

मेरे फ़िरदौस की नहरें मिरी ख़ातिर हैं तो क्यूँ
प्यास के दश्त में हैरान फिराया है मुझे

सारी मख़्लूक़ से तक़्वीम में अहसन हूँ मैं
और फिर आग का ईंधन भी बनाया है मुझे

अपनी तख़रीब पे नादिम हूँ न तामीर पे ख़ुश
तू ने ढाया है मुझे तू ने बनाया है मुझे