ये आलम-ए-वहशत है कि दहशत का असर है
दामन की ख़बर है न गरेबाँ की ख़बर है
दिल तोड़ने वाले ये तुझे कुछ भी ख़बर है
अल्लाह का घर है अरे अल्लाह का घर है
देखोगे जो हालात पे थोड़ी सी नज़र है
हर शख़्स ग़ुलाम-ए-असर-ओ-बंदा-ए-ज़र है
दो-चार क़दम चल के ठहरते नहीं रहरव
तज़हीक-ए-मनाज़िल है ये तौहीन-ए-सफ़र है
कितने ही उलूम इस में हैं पोशीदा-ओ-दरकार
ये शेर-ओ-सुख़न खेल नहीं 'ताज'-ए-हुनर है
ग़ज़ल
ये आलम-ए-वहशत है कि दहशत का असर है
रियासत अली ताज