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यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम | शाही शायरी
yaksan lagen hain un ko to dair-o-haram baham

ग़ज़ल

यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

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यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम
जो पूजते हैं दिल में ख़ुदा-ओ-सनम बहम

देखा तो एक शोले से ऐ शैख़-ओ-बरहमन
रौशन हैं शम-ए-दैर ओ चराग़-ए-हरम बहम

बारीक हैं दहन से तिरे वक़्त-ए-ख़ंदा यार
करते हैं दीद-ए-हस्ती ओ सैर-ए-अदम बहम

नासेह न हम तिरी न हमारी सुनेगा तू
क्या फ़ाएदा जो बहस करें दो असम बहम

ख़र-मस्तियों पे मोहतसिब आता है चल 'बक़ा'
बाँधें हम इस हिमार के दोनों क़दम बहम