यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम
जो पूजते हैं दिल में ख़ुदा-ओ-सनम बहम
देखा तो एक शोले से ऐ शैख़-ओ-बरहमन
रौशन हैं शम-ए-दैर ओ चराग़-ए-हरम बहम
बारीक हैं दहन से तिरे वक़्त-ए-ख़ंदा यार
करते हैं दीद-ए-हस्ती ओ सैर-ए-अदम बहम
नासेह न हम तिरी न हमारी सुनेगा तू
क्या फ़ाएदा जो बहस करें दो असम बहम
ख़र-मस्तियों पे मोहतसिब आता है चल 'बक़ा'
बाँधें हम इस हिमार के दोनों क़दम बहम
ग़ज़ल
यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'