यही जो तेरे मिरे दिल की राजधानी थी
यहीं कहीं पे तिरी और मिरी कहानी थी
यहीं कहीं पे अदू ने पड़ाव डाला था
यहीं कहीं पे मोहब्बत ने हार मानी थी
अजीब साअत-ए-बे-रंग में तू बछड़ा था
कि दिल लहू था मिरा और न आँख पानी थी
मकाँ बदलते हुए रेज़ा रेज़ा कर डाले
पुराने ख़्वाब थे तस्वीर भी पुरानी थी
नसीब उजड़ने से पहले की बात है 'नासिक'
हमारे पाँव की मिट्टी भी आसमानी थी
ग़ज़ल
यही जो तेरे मिरे दिल की राजधानी थी
अतहर नासिक