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यही होता है अक्सर ज़िंदगी में | शाही शायरी
yahi hota hai akasr zindagi mein

ग़ज़ल

यही होता है अक्सर ज़िंदगी में

प्रियदर्शी ठाकुर ‘ख़याल’

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यही होता है अक्सर ज़िंदगी में
कि थोड़ा ग़म भी शामिल हो ख़ुशी में

उदास आँखों में पलकों की नमी में
झलकती थी वफ़ा भी बे-रुख़ी में

वहाँ दुश्वार था ख़ुद से भी मिलना
तलाश-ए-यार क्या हो बे-ख़ुदी में

गिले-शिकवे तो होते ही रहेंगे
चलो कुछ देर बैठें चाँदनी में

अँधेरों से शिकायत हो तो क्या हो
दिखाई कुछ न दे जब रौशनी में

न कोई आरज़ू दिल में शिफ़ा की
न हासिल है शिफ़ा चारागरी में

मिसाल 'अर्जुन' की रखना याद हर दम
बहुत आगे बढ़ोगे ज़िंदगी में

ग़नीमत है कि अब भी देखते हैं
हम अपने-आप को इस अजनबी में

'ख़याल' इतने न थे कम-ज़र्फ़ पहले
बड़ी गहराई थी तिश्ना-लबी में